Bhartendu Harishchandra – भारतेंदु हरिशचंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य और साथ ही हिंदी साहित्य के जनक के नाम से जाने जाते है। आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली हिंदी लेखको में से वे एक है। वे एक सम्मानित कवी भी है। वे बहुत से नाटको के लेखक भी रह चुके थे। अपने कार्यो में उन्होंने सामाजिक राय के लिए रिपोर्ट, पब्लिकेशन, ट्रांसलेशन और मीडिया जैसे सभी उपकरणों का उपयोग किया था।
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* कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भारतेंदु हरिशचंद्र के बारे में wikipedia से ली गयी है.
भारतेंदु हरिशचंद्र की जीवनी – Bhartendu Harishchandra Biography In Hindi
वे अपने उपनाम “रसा”, से कोई भी लेख लिखते थे, हरिशचंद्र ने अपने लेखो में लोगो की व्यथा, देश की कविता, निर्भरता, अमानवीय शोषण, मध्यम वर्गीय लोगो की अशांति और देश के विकास में बाधा को दर्शाया था। वे एक प्रभावशाली हिन्दू “परंपरावादी” थे जिन्होंने वैष्णव भक्ति के उपयोग से हिन्दू धर्म की व्याख्या की थी।
जीवनी –
बनारस में जन्मे भारतेंदु हरिशचंद्र के पिता गोपाल चंद्र थे, जो एक कवी थे। वे अपने उपनाम गिरधर दास के नाम से लिखते थे। भारतेंदु के माता-पिता की मृत्यु जब वे युवावस्था में थे तभी हो गयी थी लेकिन उनके माता-पिता के भारतेंदु पर काफी प्रभाव पड़ चूका था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने बताया की कैसे भारतेंदु ओड़िसा में पूरी के जगन्नाथ मंदिर अपने परिवार के साथ 1865 में गये थे, जब वे आयु के सिर्फ 15 वे साल में थे। इस यात्रा के समय बंगाल पुनर्जागरण काल का उनपर काफी प्रभाव पड़ा और तभी उन्होंने सामाजिक, इतिहासिक और पौराणिक नाटको और हिंदी उपन्यासों की रचना करने का निर्णय लिया था। इसी प्रभाव के चलते उन्होंने 1868 में बंगाली नाटक विद्यासुंदर का रूपांतर हिंदी भाषा में किया था।
भारतेंदु ने अपना पूरा जीवन हिंदी साहित्य के विकास में व्यतीत किया। लेखक, देशभक्त और आधुनिक कवी के रूप में उन्हें पहचान दिलाने के उद्देश्य से 1880 में काशी के विद्वानों ने सामाजिक मीटिंग में उन्हें “भारतेंदु” की उपाधि दी थी। प्रसिद्ध साहित्यिक आलोचक राम विलास शर्मा ने भी उन्हें हिंदी साहित्य का सबसे प्रभावशाली और आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक और नायक बताया।
जर्नलिज्म, ड्रामा और कवी के क्षेत्र में भी भारतेंदु हरिशचंद्र ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने कवी वचन सुधा जैसी पत्रिका को 1868 में एडिट किया था 1874 में उन्होंने अपने लेखो के माध्यम से देश के लोगो को देश में बने उत्पाद का उपयोग करते हुए स्वदेशी अपनाओ का नारा दिया था। इसके बाद 1873 में हरिशचंद्र ने पत्रिका और बाल वोधिनी में उन्होंने देश के लोगो को स्वदेशी वस्तुओ का उपयोग करने की प्रार्थना की थी। वे वाराणसी के चौधरी परिवार के भी सदस्य थे, जो अग्रवाल समुदाय से संबंध रखते थे। उनके पूर्वज बंगाल के लैंडलॉर्ड थे। उन्हें एक बेटी भी है। उन्होंने अग्रवाल समुदाय के विशाल इतिहास को भी लिखा है।
1983 से मिनिस्ट्री ऑफ़ इनफार्मेशन एंड ब्राडकास्टिंग भारत में हिंदी भाषा के विकास के लिए भारतेंदु हरिशचंद्र अवार्ड दे रहा है।
नाटक –
भारतेंदु हरिशचंद्र ने कलाकार के रूप में थिएटर में प्रवेश किया था और जल्द ही वे डायरेक्टर, मेनेजर और नाटककार भी बने गये। उन्होंने थिएटर का उपयोग जनता की राय लेने के लिए किया था। उनके मुख्य नाटक इस प्रकार है –
• वैदिकी हिमसा हित्न्सा ना भवती, 1873
• जब्बलपुर
• भारत दुर्दशा, 1875
• पौराणिक सत्य हरिशचंद्र (सच्चा हरिशचंद्र), 1876
• नील देवी, 1881
• अंधेर नगरी, 1881
आधुनिक हिंदी नाटको में यह सबसे प्रसिद्ध नाटक है। जिसका रूपांतर भारत में बहुत से भाषाओ में भी किया गया है।
• जब्बलपुर
• भारत दुर्दशा, 1875
• पौराणिक सत्य हरिशचंद्र (सच्चा हरिशचंद्र), 1876
• नील देवी, 1881
• अंधेर नगरी, 1881
आधुनिक हिंदी नाटको में यह सबसे प्रसिद्ध नाटक है। जिसका रूपांतर भारत में बहुत से भाषाओ में भी किया गया है।
कविता –
• भगत सर्वज्ञ
• प्रेम मलिका (1872)
• प्रेम माधुरी (1875)
• प्रेम तरंग (1877), प्रेम प्रलाप, प्रेम फुहल्वारी (1883) और प्रेम सरोवर
• होली
• मधु मुकुल
• राग संग्रह
• वर्षा विनोद
• विनय प्रेम पचास्सा
• फूलो का गुच्छा
• चन्द्रावली, 1876 और कृष्णा चरित्र
• उतरार्ध भगत मल
• प्रेम मलिका (1872)
• प्रेम माधुरी (1875)
• प्रेम तरंग (1877), प्रेम प्रलाप, प्रेम फुहल्वारी (1883) और प्रेम सरोवर
• होली
• मधु मुकुल
• राग संग्रह
• वर्षा विनोद
• विनय प्रेम पचास्सा
• फूलो का गुच्छा
• चन्द्रावली, 1876 और कृष्णा चरित्र
• उतरार्ध भगत मल
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