1) कर्म न करने से, कर्म करना श्रेष्ठ हैं.
2) आसक्ति से कामना का जन्म होता हैं.
3) नैराश्यं परमं सुखम् (निराश परम सुख है.)
4) क्रोध से मुर्खता उत्पन्न होती हैं, मूढ़ता से भ्रान्ति, भ्रान्ति से बुध्दि का नाश, और बुध्दि के नाश से प्राणी का नाश होता हैं.
5) असत का अस्तित्व नहीं है और सत का नाश नहीं है, नित्य रहने वाले देह की यह देह नाशवान कही गई है.
6) कार्य में कुशलता का योग कहते है.
7) सर्वत्र समभाव रखने वाला योगी अपने को सब भूतों में, और सब भूतों को अपने में देखता है.
8) ईश्वर सब प्राणियों के ह्रदय में वास करता है, और अपनी माया के बल से उन्हें चाक पर चढ़े हुये घड़े की भांति घुमाता है.
9) जो अपने हिस्से का काम किये बिना ही भोजन पाते है, वे चोर है.
10) परमात्मा को प्राप्ति के इच्छुक ब्रम्हचर्य का पालन करते है.
11) मन बड़ा चंचल है, मनुष्य को मथ डालता है, अतः बहुत बलवान है.
12) अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी है.
13) फल की अभिलाषा छोड़ कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है.
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